आंखें, हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं। ये बहुत नाजुक होती हैं, इसलिए उनकी पूरी देखभाल करें, थोड़ी सी भी परेशानी हो तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। अगर आंखों से संबंधित समस्याओं को आप लंबे समय तक नज़रअंदाज़ करेंगे तो दृष्टि प्रभावित हो सकती है या हमेशा के लिए आंखों की रोशनी छिन सकती है।
गैजेट्स के बढ़ते चलन ने आंखों के स्वास्थ को लेकर खतरा बढ़ा दिया है, ऐसे में डिजिटल आई स्ट्रेन आंखों की एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है।
तो जानिए कि आंखों से संबंधित सामान्य समस्याएं कौन-कौनसी हैं, इन्हें स्वस्थ रखने के लिए कौन-कौनसे जरूरी उपाय किए जाएं और गैजेट्स का इस्तेमाल करते समय कौन-कौनसी सावधानियां रखना जरूरी हैं।
आंखों से संबंधित सामान्य समस्याएं
आंखों से संबंधित कईं समस्याएं होती हैं, जिनमें से कुछ बहुत मामूली होती हैं तो कुछ बहुत गंभीर। लेकिन आंखें बहुत संवेदनशील होती हैं, इसलिए समस्या मामूली भी हो तो खुद से आंखों का इलाज न करें, डॉक्टर से संपर्क करें।
ड्राय आई सिंड्रोम
गैजेट्स के बढ़ते प्रचलन से ड्राई आई सिंड्रोम की समस्याएं बढ़ती ही जा रही है। इसमें या तो आंखों में आंसू कम बनने लगते हैं या उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं रहती। आंसू, आंखों के कार्निया एंव कन्जंक्टाइवा को नम एंव गीला रख उसे सूखने से बचाते हैं।
आंखों में जलन, चुभन महसूस होना, सूखा लगना, खुजली होना, भारीपन, आंख की कन्जक्टाइवा का सूखना, आंखों में लाली तथा उन्हें कुछ देर खुली रखने में दिक्कत महसूस होना इस सिंड्रोम के मुख्य लक्षण हैं।
मोतियाबिंद
हमारी आंखों के लेंस लाइट या इमेज को रेटिना पर फोकस करने में सहायता करते हैं। जब लेंस क्लाउडी हो जाता है तो लाइट लेंसों से स्पष्ट रूप से गुजर नहीं पाती जिससे जो इमेज आप देखते हैं वो धुंधली हो जाती है, इस कारण दृष्टि के बाधित होने को मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहते हैं।
नजर धुंधली होने के कारण मोतियाबिंद से पीड़ित लोगों को पढ़ने, नजर का काम करने, कार चलाने (विशेषकर रात के समय) में समस्या आती है।
अधिकतर मोतियाबिंद धीरे-धीरे विकसित होते हैं और शुरूआत में दृष्टि प्रभावित नहीं होती है, लेकिन समय के साथ यह आपकी देखने की क्षमता को प्रभावित करता है। इसके कारण व्यक्ति को अपनी प्रतिदिन की सामान्य गतिविधियों को करना भी मुश्किल हो जाता है।
एज़ रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन (एएमडी)
विश्वभर में पचास वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में एज-रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन (एएमडी) दृष्टिहीनता का सबसे प्रमुख कारण है। बढ़ती उम्र इसका सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है, इसके अलावा अनुवांशिक और पर्यावर्णीय कारक तथा धुम्रपान इसका खतरा बढ़ा देते हैं।
एएमडी सीधे मैक्युला को प्रभावित करता है, मैक्युला, रेटिना में एक छोटा सा क्षेत्र होता है, जो मानव नेत्र के सेंट्रल विज़न (केंद्रीय दृष्टि) के लिए जिम्मेदार होता है। इसके कारण आंखों का पैनापन और केंद्रीय दृष्टि प्रभावित होती है जो चीजों को स्पष्ट रूप से देखने के लिए जरूरी होती है।
कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम
कंप्यूटर और लैपटॉप के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ड्राय आईस ही नहीं कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं।
एक तो कंप्यूटर से हमारी आंखों की दूरी कम रहती है, दूसरा इस दौरान हमारी आंखों की मूवमेंट कम होती है।
आंखों और सिर में भारीपन, धुंधला दिखना, जलन होना, पानी आना, खुजली होना, आंख का सूखा रहना (ड्राई आई), पास की चीजें देखनें में दिक्कत होना, एक वस्तु का दो दिखाई देना, अत्यधिक थकान होना, गर्दन, कंधों एंव कमर में दर्द होना कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम के कुछ सामान्य लक्षण हैं।
काला मोतिया
काला मोतिया, ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचने से होता है। जब आंखों से तरल पदार्थ निकलने की प्रक्रिया में रूकावट आती है तो आंखों में दबाव (इंट्रा ऑक्युलर प्रेशर) बढ़ता है। अगर ऑप्टिक नर्व पर लगातार दबाव बढ़ता रहेगा तो वो नष्ट भी हो सकती हैं।
हमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व ही सूचनाएं और किसी चीज का चित्र मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। यदि ऑप्टिक नर्व और आंखों के अन्य भागों पर पड़ने वाले दबाव को कम न किया जाए तो आंखों की रोशनी पूरी तरह जा सकती है।
पूरे विश्व में काला मोतिया, दृष्टिहीनता का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। अगर काला मोतिया की पहचान प्रारंभिक चरणों में ही हो जाए तो दृष्टि को कमजोर पड़ने से रोका जा सकता है।
काला मोतिया को ग्लुकोमा या काला मोतियाबिंद भी कहते हैं। यह किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन उम्रदराज लोगों में इसके मामले अधिक देखे जाते हैं।
डायबिटिक रेटिनोपैथी और डायबिटिक मैक्युलर इडेमा
जिन लोगों को डायबिटीज़ है, उन सबको डायबिटिक रेटिनोपैथी और डायबिटिक मैक्युलर इडेमा (डीएमई) का खतरा होता है। ये विश्वभर में दृष्टि प्रभावित होना और दृष्टिहीनता का सबसे प्रमुख कारण है। डीआर और डीएमई अपने पनपने का कोई संकेत नहीं देते हैं, जब तक कि पीड़ित की नज़र धुंधली नहीं हो जाती है।
इनसे बचने के लिए बहुत जरूरी है कि डायबिटीज़ के रोगी अपनी आंखों का विशेष ध्यान रखें और नियमित अंतराल पर अपनी आंखों की जांच कराते रहें, ताकि दृष्टि संबंधी कोई जटिलता होने पर उसे नियंत्रित करने के लिए सभी जरूरी उपाय किए जा सकें।
नज़रअंदाज़ न करें इन लक्षणों को
- आंखों या सिर में भारीपन और धुंधला दिखाई देना।
- आंखें लाल होना और उनसे पानी आना।
- आंखों में खुजली होना
- रंगों का साफ दिखाई न देना।
- लगातार सिरदर्द की शिकायत रहना और आंखों में थकावट होना।
आई टेस्ट और विज़न स्क्रीनिंग
आपको आंखों से संबंधित कोई समस्या हो या न हो, आपको अपनी आंखों की नियमित रूप से जांच कराना चाहिए।
विज़न स्क्रीनिंग टेस्ट में दृष्टि की जांच की जाती है कि आपकी पास की या दूर की नज़र कमजोर तो नहीं हो गई।
आंखों की जांच में आप्टिक नर्व, मोतियाबिंद, कालामोतिया आदि आंखों से संबंधित बीमारियों की जांच की जाती है।
कब शुरू करें : 18 सल की उम्र से
कितने अंतराल के बाद: साल में एक बार;जिन्हें डायबिटीज़ हो उन्हें आंखों से संबंधित समस्याएं ज्यादा होती हैं, इसलिए ऐसे लोगों को हर छह महीने में आंखों की जांच कराना चाहिए, स्थिति अधिक गंभीर होने पर यह जांच हर तीन महीने में कराई जानी चाहिए।
जिन्हें चश्मा लगता है उन्हें भी नियमित तौर आंखों की जांच अवश्य करवाना चाहिए। इसमें आई डाईलेशन टेस्ट भी शामिल है यह रेटिना के स्वास्थ्य को बताता है।
आंखों का रखें विशेष ख्याल
- आंखों को स्वस्थ रखने के लिए अपने डाइट चार्ट में हरी सब्जियों, फलों, दूध और दुग्ध उत्पादों को शामिल करें।
- छह से आठ घंटे की आरामदायक नींद लें; ये आपकी आंखों को प्राकृतिक तरीके से तरोताजा रखने में सहायता करती है।
- धूल-मिट्टी और सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचने के लिए बाहर निकलते समय अच्छी क्वालिटी का चश्मा लगाएं।
- धुम्रपान न करें, क्योंकि इससे मोतियाबिंद और एएमडी की आशंका बढ़ जाती है।
- कंप्यूटर पर कार्य करते समय पलकों को झपकाते रहें। इससे आंख के आंसू जल्दी सूखते या उड़ते नहीं हैं तथा टीयर फिल्म कार्निया एंव कन्जंक्टाइवा के ऊपर लगातार बनी रहती है।
- कंप्यूटर पर काम करते समय हर आधा घंटे के बाद पांच से दस मिनिट के लिये नजर स्क्रीन से हटा लें एंव हर एक घंटे के बाद आंखों को पांच से दस मिनिट के लिये आराम दें।
- कम्प्यूटर की स्क्रीन को अपनी आंखों से 20-30 इंच दूर रखें, जबकि टीवी को कम से कम 3.5 मीटर दूर से देखना चाहिए।
- हर 20 मिनिट में 20 सैकंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर कहीं देखें। फिर दोबारा काम शुरू करें।
- कम्प्यूटर को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि उसका टेक्स्ट लेवल आंखों के लेवल पर हो।
- पढ़ते समय या नज़र का काम करते समय पर्याप्त रोशनी रखें।
- कभी भी चलती हुई गाड़ी में न पढ़ें।
- देर रात तक कृत्रिम रोशनी में काम न करें।
- दिन में दो-तीन बार आंखों को साफ पानी से धोएं।