बच्चों की दृष्टि संबंधी समस्याएं एवं आँखों की देखभाल के टिप्स

आंखें, हमारे शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण, नाजुक और संवेदनशील अंग है। सुबह सो कर उठने से लेकर रात को सोने तक ये बिना रूके और बिना थके लगातार काम करती रहती हैं। आंखों के बिना जीवन में कोई रंग नहीं रह जाते।

इसलिए बहुत जरूरी है कि नवजात शिशुओं से लेकर किशोर उम्र के बच्चों के माता-पिता उनकी आंखों के स्वास्थ को लेकर कोई लापरवाही न बरतें।

तो जानिए कि बच्चों में आंखों से संबंधित कौन-कौन सी सामान्य समस्याएं होती हैं और आंखों को स्वस्थ रखने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं।

बच्चों की आंखों की देखभाल

बच्चे नासमझ होते हैं, इसलिए उन्हें आंखों के महत्व और उसकी सुरक्षा से जुड़ी बातों को समझाना बहुत जरूरी है। बच्चों की आंखों को स्वस्थ्य रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

नवजात शिशु

बच्‍चे के जन्‍म के बाद अस्‍पताल से डिस्‍चार्ज होने से पहले ही उसकी आंखों की जांच किसी नेत्र विशेषज्ञ से करा लेनी चाहिए। इससे कोई जन्‍मजात समस्‍या हो तो पकड़ में आ सकती है।

नवजात शिशु की आंखों में किसी तरह की समस्‍या जैसे पलकों में सूजन, आंखों से पानी आना, आंसुओं की नली का बंद होना आदि का सही समय पर केवल दवाईयों से उपचार के द्वारा ठीक किया जा सकता है।

कम वजन वाले और समय से पहले पैदा हुए बच्‍चों की आंखों की नियमित रूप से जांच कराएं।

नवजात शिशुओं को विटामिन ए की खुराक जरूर पिलवाएं; इसकी कमी से बच्‍चे को रतौंधी हो सकती है।

छोटे बच्चे

अगर किसी कारणवश आप नवजात शिशु की आंखों की जांच नहीं करा पाएं हों तो बच्‍चे को स्‍कूल भेजने से पहले आंखों की जांच करा लें।

बच्‍चे की नजर कमजोर है तो उसे सही नंबर का चश्‍मा पहनाएं, अन्‍यथा आंखें स्‍थायी रूप से कमजोर हो जाती हैं।

बहुत जरूरी है कि बचपन में बच्चों की आंखों का विशेष ध्यान रखा जाए। अगर बच्चों की आंखें कमजोर होंगी तो उनके सीखने की क्षमता और व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

किशोर/टीनएजर्स

आजकल किशोर उम्र के बच्चों पर एक तो पढ़ाई का बहुत दबाव है, दूसरा गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण उनकी आंखों पर ‘डिजिटल स्ट्रेस’ काफी बढ़ रहा है।

ऐसे में बहुत जरूरी है कि माता-पिता उन्हें आंखों की देखभाल करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें समझाएं कि पोषक भोजन, पर्याप्त आराम और गैजेट्स का सीमित इस्तेमाल आंखों को स्वस्थ रखने और बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी बनाए रखने के लिए कितना जरूरी है।

बच्चों में आंखों से संबंधित सामान्य समस्याएं

बच्चों में आंखों से संबंधित कईं प्रकार की समस्याएं होती हैं, लेकिन कुछ समस्याएं बहुत सामान्य हैं जिनका आसानी से उपचार संभव है।

निकट दृष्टिदोष (मायोपिया)

निकट दृष्टि दोष में कार्निया और लेंस, रेटिना पर ठीक तरह से फोकस नहीं बना पाते हैं। ऐसे बच्चों की पास की दृष्टि स्पष्ट होती है, लेकिन उन्हें दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं।

यह समस्या तब होती है जब आंखों की पुतली थोड़ी लंबी हो जाती है या लेंस बहुत मोटा हो जाता है, जिससे इमेज रेटिना पर बनने के बजाय उसके सामने बनने लगती है।

इस समस्या को माइनस नंबर का चश्मा पहनकर ठीक किया जा सकता है।

दूर दृष्टिदोष (हाइपरमेट्रोपिया)

दूर दृष्टिदोष से पीड़ित बच्चों को दूर का तो साफ दिखाई देता है, लेकिन पास की वस्तुओं पर उनका स्पष्ट फोकस नहीं बन पाता है। यह तब होता है जब आंखों की पुतली बहुत छोटी हो जाती है या लेंस बहुत पतला हो जाता है, इससे इमेज रेटिना के पीछे बनने लगती है। वैसे यह समस्या छोटे बच्चों में बहुत कम होती है, इसमें प्लस नंबर का चश्मा पहनना पड़ता है।

एम्बलायोपिया

एम्बलायोपिया को ‘लेजी आई’ भी कहते हैं। यह एक विज़न डिवलपमेंट डिसआर्डर है, जिसमें आंखों में देखने की सामान्य क्षमता विकसित नहीं हो पाती है। चश्मे या कांटेक्ट लेंस का इस्तेमाल करने पर भी दृष्टि सामान्य नहीं हो पाती है। एम्बलायोपिया, नवजात शिशुओं में या बहुत छोटी उम्र के बच्चों में शुरू हो जाती है। अधिकतर बच्चों में यह समस्या एक आंख में होती है। इसका उपचार आठ वर्ष से पहले करा लेना चाहिए, नहीं तो बच्चे की आंखों को स्थायी क्षति पहुंच सकती है।

स्ट्राबिस्मस

स्ट्राबिस्मस, आंखों से संबंधित एक समस्या है, जिसमें किसी वस्तु को देखते समय आंखों का अलाइनमेंट ठीक नहीं होता है। अगर समय रहते इसका पता चल जाए तो सर्जरी या विशेषरूप से डिजाइन किए चश्मों से इसे ठीक किया जा सकता है।

ल्युकोकोरिया (व्हाइट पुपिल)

कईं नवजात शिशुओं की आंखों की पुतलियां सफेद दिखाई देती हैं। यह इस कारण होता है कि कुछ बच्चे जन्मजात मोतियाबिंद के शिकार होते हैं। मोतियाबिंद में आंखों का प्रकृतिक लेंस क्लाउडी हो जाता है। ल्युकोकोरिया में तुरंत सर्जरी की जरूरत नहीं होती है, लेकिन समय रहते सर्जरी कराने से आंखों को स्थायी नुकसान पहुंचने से बचा जा सकता है।

पुतलियों के सफेद होने का एक कारण आई कैंसर, भी हो सकता है, लेकिन इसके मामले कम देखे जाते हैं। इस कैंसर को रेटिनोब्लास्टोमा कहते हैं, क्योंकि ये रेटिना में विकसित होता है।

नज़रअंदाज़ न करें इन संकेतों को

बच्चे छोटे होते हैं, उस उम्र तक उनकी समझ विकसित नहीं हो पाती है, इसलिए यह माता-पिता का कर्तव्य है कि अपने बच्चों का ध्यान रखें। अगर बच्चों में निम्न में से कोई भी लक्षण दिखाई दें तो तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ से जांच कराएं।

  • अगर आपका बच्चा आंखों को चुंदी या स्क्विंट करके देख रहा है।
  • ज़ोर-ज़ोर से और बार-बार आंख रगड़ता हो।
  • एक आंख को बंद करता हो या पढ़ते या टीवी देखते समय सिर एक ओर झुका लेता हो।
  • टीवी, कम्प्युटर या मोबाइल की स्क्रीन को बहुत पास से देखता हो।
  • किताबों को अपनी आंखों के बहुत पास लाकर पढ़ता हो।
  • लगातार कई दिनों से आंखों और सिर में दर्द रह रहा हो।
  • बार-बार या सामान्य से अधिक पलकें झपकाने की समस्या हो।

सुरक्षात्मक उपाय

  • बच्‍चों को नुकीली और कड़ी चीजों अथवा खिलौनों से दूर रखें।
  • उन्हें धूल, मिट्टी और तेज धूप में न खेलने दें।
  • बच्चों को काजल या सुरमा बिल्कुल न लगाएं; इनमें कार्बन के कण होते हैं जिससे कार्निया और कंजक्‍टाइवा पर खरोंच आ सकती है।
  • बच्चों में छोटी उम्र से ही हाथ धोने की आदत डालें; गंदे हाथों से आंखों को रगड़ने या खुजलाने से एलर्जी या संक्रमण हो सकता है।

आंखों को स्वस्थ और सामान्य रखने के लिए जरूरी टिप्स

बच्चों की आंखों को स्वस्थ और सामान्य बनाए रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है:

  • बच्चों को गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल न करने दें। बच्चों की आंखें नाजुक होती हैं, स्क्रीन को अधिक समय तक घूरने से उनकी आंखों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंच सकता है।
  • उन्हें संतुलित और पोषक भोजन खाने की आदत डालें, ताकि उनकी आंखों का विकास उचित रूप से हो सके।
  • बच्चों को प्रतिदिन 6-8 गिलास पानी पीने के लिए प्रेरित करें, पानी आंखों में नमी और ताज़गी बनाए रखता है।
  • बच्चों को पूरी नींद लेने दें, उनके सोने और उठने का एक समय निर्धारित कर दें।
  • बच्‍चों को झुककर या लेटकर न पढ़ने दें, हमेशा टेबल-कुर्सी का इस्‍तेमाल करने के लिए कहें।
  • आंखों का फोकसिंग पॉवर सीमित होता है; अत: बच्‍चों को हर आधे घंटे के बाद पांच मिनिट का ब्रेक लेने दें।
  • उन्हें देर रात तक कृत्रिम रोशनी में न पढ़ने दें।
  • पढ़ते समय किताबों को कम से कम एक फीट की दूरी पर रखने के लिए कहें।
  • बच्चों को हमेशा घर में कैद करके न रखें, उन्हें प्रकृतिक प्रकाश में समय बिताने दें।
  • आंखों की नियमित रूप से जांच कराएं, अगर कोई समस्या हो उपचार कराने में देरी न करें।